1 दिस॰ 2022

कृषि-रसायन

कृषि-रसायन और उनके प्रभाव


हरित क्रान्ति के चलते फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये अजैव (अकार्बनिकउर्वरक (इनआर्गेनिक फर्टिलाइजरऔर पीड़कनाशी का प्रयोग कई गुना बढ़ गया है और अब पीड़कनाशीशाकनाशीकवकनाशी (फंगीसाइडआदि का प्रयोग काफी होने लगा है। ये सभी अलक्ष्य जीवों (नॉन-टारगेट आर्गेनिज्म), जो मृदा पारितंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक हैंके लिये विषैले हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि स्थानीय पारितंत्र में उन्हें जैव आवर्धित (बायोमैग्निफाइडकिया जा सकता हैहम जानते हैं कि कृत्रिम उर्वरकों की मात्रा को बढ़ाते जाने से जलीय पारितंत्र बनाम सुपोषण (यूट्रॉफिकेशनपर क्या असर होगा। इसलिये कृषि वर्तमान समस्याएँ अत्यन्त गम्भीर हैं।


जैव खेतीकेस अध्ययन


एकीकृत जैव खेती चक्रीय एवं शून्य अपशिष्ट (जीरो वेस्टवाली है। इसमें एक प्रक्रम से प्राप्त अपशिष्ट अन्य प्रक्रमों के लिये पोषक के रूप में काम में आता है। इसके कारण संसाधन का अधिकतम उपयोग सम्भव है और उत्पादन की क्षमता भी बढ़ती है। रमेश चंद्र डागर नामक सोनीपतहरियाणा का किसान भी यही कर रहा है। वह मधुमक्षिका पालनडेयरी प्रबन्धनजल संग्रहण (वाटर हार्वेस्टिंग), कम्पोस्ट बनाने और कृषि का कार्य शृंखलाबद्ध प्रक्रमों में करता है जो एक दूसरे को सम्भालते हैं और इस प्रकार यह एक बहुत ही किफायती और दीर्घ-उपयोगी प्रक्रम बन जाता है। उस फसल के लिये रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि पशुधन के उत्सर्ग (मल-मूत्रयानी गोबर का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है। फसल अपशिष्ट का प्रयोग कम्पोस्ट बनाने के लिये किया जाता है जिसका प्रयोग प्राकृतिक उर्वरक के रूप में या फार्म की ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति के लिये प्राकृतिक गैस के उत्पादन में किया जा सकता है। इस सूचना के प्रसार और एकीकृत जैव खेती के प्रयोग में सहायता प्रदान करने के लिये डागर ने हरियाणा किसान कल्याण क्लब बनाया है जिसकी वर्तमान सदस्य संख्या 5000 कृषक है।


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