प्लास्टिक

 

प्लास्टिक अपशिष्ट के उपचार सम्बन्धी अध्ययन

बंगलुरु में प्लास्टिक की बोरी के उत्पादनकर्ता, 57 वर्षीय अहमद खान ने प्लास्टिक अपशिष्ट की सतत बढ़ती हुई समस्या का एक आदर्श हल ढूँढ लिया है। वह पिछले 20 वर्षों से प्लास्टिक की बोरियाँ बना रहा है। लगभग 8 वर्ष पहले उसने महसूस किया कि प्लास्टिक अपशिष्ट एक वास्तविक समस्या है। उसकी कम्पनी ने पुनश्चक्रित परिवर्तित प्लास्टिक का पॉलिब्लेंड नामक एक महीन पाउडर तैयार किया।

इस मिश्रण को बिटुमेन के साथ मिश्रित किया गया जिसका प्रयोग सड़क बनाने में किया जाता है। अहमद खान ने आर-वी- इंजीनियरिंग कॉलेज और बंगलुरु सिटी कार्पोरेशन के सहयोग से बिटुमेन और पॉलिब्लेंड के सम्मिश्रण (ब्लैंड) का प्रयोग सड़क बनाते समय किया तो पाया कि बिटुमेन का जल विकर्षक-(रिपेलेंट) गुण बढ़ गया और इसके कारण सड़क की आयु तीन गुना अधिक हो गई। पॉलिब्लेंड बनाने के लिये कच्चे माल के रूप में किसी प्लास्टिक फिल्म अपशिष्ट का प्रयोग किया जाता है। प्लास्टिक अपशिष्ट के लिये कचरा-चुनने वालों को जहाँ 0-40 रुपए प्रति किलोग्राम मिलता था, अब खान से उन्हें 6 रुपए प्रति किलोग्राम मिलने लगा है।

बंगलुरु में खान की तकनीक का प्रयोग कर वर्ष 2002 तक लगभग 40 किलोमीटर सड़क का निर्माण हो चुका है। वहाँ पर अब खान को पॉलिब्लेंड तैयार करने के लिये जल्द ही प्लास्टिक अपशिष्ट की कमी पड़ने लगेगी। पॉलिब्लेंड की खोज के लिये आभार मानना चाहिए कि अब हम प्लास्टिक अवशिष्ट के दमघोंटू दुष्प्रभाव से अपने को बचा सकते हैं।

अस्पताल से खतरनाक अपशिष्ट निकलते हैं जिसमें विसंक्रामक डिसिंफेक्टेंट और अन्य हानिकर रसायन तथा रोगजनक सूक्ष्म जीव भी होते हैं। इस प्रकार के अपशिष्ट की सावधानीपूर्वक उपचार और निपटान की आवश्यकता होती है। अस्पताल के अपशिष्ट के निपटान के लिये भस्मक (इंसिनरेटर) का प्रयोग अत्यन्त आवश्यक है।

ऐसे कम्प्यूटर और इलेक्ट्रॉनिक सामान जो मरम्मत के लायक नहीं रह जाते हैं इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट (-वेस्ट्स) कहलाते हैं। -अपशिष्ट को लैंडफिल्स में गाड़ दिया जाता है या जलाकर भस्म कर दिया जाता है। विकसित देशों में उत्पादित -अपशिष्ट का आधे-से-अधिक भाग विकासशील देशों, खासकर चीन, भारत तथा पाकिस्तान में निर्यात किया जाता है जबकि तांबा, लोहा, सिलिकॉन, निकल और स्वर्ण जैसे धातु पुनश्चक्रण (रीसाइक्लिंग) प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त किये जाते हैं। विकसित देशों में -अपशिष्ट के पुनश्चक्रण की सुविधाएँ तो उपलब्ध हैं लेकिन विकासशील देशों में यह कार्य प्रायः हाथ से किया जाता है। इस प्रकार इस कार्य से जुड़े कर्मियों पर -अपशिष्ट में मौजूद विषैले पदार्थों का प्रभाव पड़ता है। -अपशिष्ट के उपचार का एकमात्र हल पुनश्चक्रण है, यदि इसे पर्यावरण-अनुकूल या हितैषी तरीके से किया जाये।


कृषि-रसायन और उनके प्रभाव


हरित क्रान्ति के चलते फसल उत्पादन बढ़ाने के लिये अजैव (अकार्बनिक) उर्वरक (इनआर्गेनिक फर्टिलाइजर) और पीड़कनाशी का प्रयोग कई गुना बढ़ गया है और अब पीड़कनाशी, शाकनाशी, कवकनाशी (फंगीसाइड) आदि का प्रयोग काफी होने लगा है। ये सभी अलक्ष्य जीवों (नॉन-टारगेट आर्गेनिज्म), जो मृदा पारितंत्र के महत्त्वपूर्ण घटक हैं, के लिये विषैले हैं। क्या आप सोच सकते हैं कि स्थानीय पारितंत्र में उन्हें जैव आवर्धित (बायोमैग्निफाइड) किया जा सकता है? हम जानते हैं कि कृत्रिम उर्वरकों की मात्रा को बढ़ाते जाने से जलीय पारितंत्र बनाम सुपोषण (यूट्रॉफिकेशन) पर क्या असर होगा। इसलिये कृषि वर्तमान समस्याएँ अत्यन्त गम्भीर हैं।

जैव खेती- केस अध्ययन

एकीकृत जैव खेती चक्रीय एवं शून्य अपशिष्ट (जीरो वेस्ट) वाली है। इसमें एक प्रक्रम से प्राप्त अपशिष्ट अन्य प्रक्रमों के लिये पोषक के रूप में काम में आता है। इसके कारण संसाधन का अधिकतम उपयोग सम्भव है और उत्पादन की क्षमता भी बढ़ती है। रमेश चंद्र डागर नामक सोनीपत, हरियाणा का किसान भी यही कर रहा है। वह मधुमक्षिका पालन, डेयरी प्रबन्धन, जल संग्रहण (वाटर हार्वेस्टिंग), कम्पोस्ट बनाने और कृषि का कार्य शृंखलाबद्ध प्रक्रमों में करता है जो एक दूसरे को सम्भालते हैं और इस प्रकार यह एक बहुत ही किफायती और दीर्घ-उपयोगी प्रक्रम बन जाता है। उस फसल के लिये रासायनिक उर्वरक के प्रयोग की कोई आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि पशुधन के उत्सर्ग (मल-मूत्र) यानी गोबर का प्रयोग खाद के रूप में किया जाता है। फसल अपशिष्ट का प्रयोग कम्पोस्ट बनाने के लिये किया जाता है जिसका प्रयोग प्राकृतिक उर्वरक के रूप में या फार्म की ऊर्जा की आवश्यकता की पूर्ति के लिये प्राकृतिक गैस के उत्पादन में किया जा सकता है। इस सूचना के प्रसार और एकीकृत जैव खेती के प्रयोग में सहायता प्रदान करने के लिये डागर ने हरियाणा किसान कल्याण क्लब बनाया है जिसकी वर्तमान सदस्य संख्या 5000 कृषक है।

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