14 नव॰ 2022

ओजोन

 समतापमण्डल में ओजोन अवक्षय


आपने इसके पहले रसायन विज्ञान की 11वीं की पाठ्यपुस्तक मेंखराबओजोन के बारे में पढ़ा है जो निम्नतर वायुमण्डल (क्षोभमण्डल/ट्रॉपोस्फीयर) में बनता है और जिससे पौधों और प्राणियों को नुकसान पहुँचा है। वायुमण्डल मेंअच्छाओजोन भी होता है जो इसके ऊपरी भाग यानी समतापमण्डल (स्ट्रैटोस्फीयर) में पाया जाता है। यह सूर्य से निकलने वाले पराबैंगनी विकिरण (अल्ट्रावायलेट रेडिएशन) को अवशोषित करने वाले कवच का काम करता है। सजीवों के डीएनए और प्रोटीन खास कर पराबैंगनी (यूवी) किरणों को अवशोषित करते हैं और इसकी उच्च ऊर्जा इन अणुओं के रासायनिक आबन्ध (केमिकल बॉन्ड्स) को भंग करते हैं। इस प्रकार पराबैंगनी किरणें सजीवों के लिये बेहद हानिकारक हैं। वायुमंडल के निचले भाग से लेकर शिखर तक वे वायु स्तम्भ (कॉलम) में ओजोन की मोटाई डॉबसन यूनिट (डीयू) में मापी जाती है।

आणविक ऑक्सीजन पर पराबैंगनी किरणों की क्रिया के फलस्वरूप ओजोन गैस सतत बनती रहती है और समतापमण्डल में इसका आणविक ऑक्सीजन में निम्नीकरण (डिग्रडेशन) भी होता रहता है। समतापमण्डल में ओजोन के उत्पादन और अवक्षय निम्नीकरण में सन्तुलन होना चाहिए। हाल में, क्लोरो फ्लोरो कार्बन (सीएफसीज/CFCs) के द्वारा ओजोन निम्नीकरण बढ़ जाने से इसका सन्तुलन बिगड़ गया है। वायुमण्डल के निचले भाग में उत्सर्जित CFCs ऊपर की ओर उठता है और यह समतापमण्डल में पहुँचता है। समतापमण्डल में पराबैंगनी किरणें उस पर कार्य करती हैं जिसके कारण C1 परमाणु का मोचन (रिलीज) होता है। C1 के कारण ओजोन का निम्नीकरण होता है जिनके कारण आणविक ऑक्सीजन का मोचन होता है। इस अभिक्रिया में C1 परमाणु का उपभोग नहीं होता है क्योंकि यह सिर्फ उत्प्रेरक का कार्य करता है। इसलिये समतापमण्डल में जो भी क्लोरो फ्लोरोकार्बन जुड़ते जाते हैं उनका ओजोन स्तर पर स्थायी और सतत प्रभाव पड़ता है। यद्यपि समतापमंडल में ओजोन का अवक्षय विस्तृत रूप से होता रहता है लेकिन यह अवक्षय अंटार्कटिक क्षेत्र में खासकर विशेष-रूप से अधिक होता है। इसके फलस्वरूप यहाँ काफी बड़े क्षेत्र में ओजोन की परत काफी पतली हो गई है जिसे सामान्यतया ओजोन छिद्र (ओजोन होल) कहा जाता है। पराबैंगनी -बी (यूवी-बी) की अपेक्षा छोटे तरंगदैर्ध्य (वेवलैंथ) युक्त पराबैंगनी (यूवी) विकिरण पृथ्वी के वायुमण्डल द्वारा लगभग पूरा-का-पूरा अवशोषित हो जाता है बशर्ते कि ओजोन स्तर ज्यों-का-त्यों रहे। लेकिन यूवी-बी डीएनए को क्षतिग्रस्त करता है और उत्परिवर्तन हो सकता है। इसके कारण त्वचा में बुढ़ापे के लक्षण दिखते हैं, इसकी कोशिकाएँ क्षतिग्रस्त हो जाती हैं और विविध प्रकार के त्वचा कैंसर हो सकते हैं। हमारे आँख का स्वच्छमंडल (कॉर्निया) यूवी-बी विकिरण का अवशोषण करता है। इसकी उच्च मात्रा के कारण कॉर्निया का शोथ हो जाता है। जिसे हिम अन्धता (स्नो-ल्माइंडनेश) मोतियाबिन्द आदि कहा जाता है। इसके उद्भासन से स्थायी रूप से क्षतिग्रस्त हो सकता है।

ओजोन अवक्षय के हानिकर प्रभाव को देखते हुए सन 1987 में माट्रिंयल (कनाडा) में एक अन्तरराष्ट्रीय सन्धि पर हस्ताक्षर हुए जिसे माट्रिंयल प्रोटोकॉल कहा जाता है। यह संधि 1989 से प्रभावी हुई। ओजोन अवक्षयकारी पदार्थों के उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिये बाद में और कई अधिक प्रयास किये गए तथा और प्रोटोकॉल में विकसित और विकासशील देशों के लिये अलग-अलग निश्चित दिशा-निर्देश जोड़े गए जिससे कि सीएफसी और अन्य ओजोन अवक्षयकारी रसायनों के उत्सर्जनों को कम किया जाये।

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