जल प्रदूषण

 

जल प्रदूषण एवं इसका नियंत्रण

सम्पूर्ण विश्व में मनुष्य जलाशयों में सभी प्रकार के अपशिष्ट का निपटान का इसका दुरुपयोग कर रहा है। हम यह मान लेते हैं कि जल सब कुछ बहाकर ले जाएगा। ऐसा करते समय हम यह नहीं सोचते कि जलाशय हमारे साथ-साथ अन्य सभी जीवों के लिये जीवन का आधार है। क्या आप बता सकते हैं कि हम नदियों और नालों में क्या-क्या बहा देते हैंविश्व के अनेक भागों में तालाबझीलसरिता (या धारानदीज्वारनदमुख (ऐस्चुएरीऔर महासागर के जल प्रदूषित हो रहे हैं। जलाशयों की स्वच्छता को कायम रखने के महत्त्व को समझते हुए भारत सरकार ने 1974 में जल प्रदूषण निरोध एवं नियंत्रण अधिनियम पारित किया है ताकि हमारे जल संसाधनों को प्रदूषित होने से बचाया जा सके।
घरेलू वाहित मल और औद्योगिक बहिःस्राव

नगरों और शहरों में जब हम अपने घरों में जल का काम करते हैं तो सभी चीजों को नालियों में बहा देते हैं। क्या आपको कभी आश्चर्य हुआ है कि हमारे घरों से निकलने वाला वाहित मल कहाँ जाता हैक्या समीपस्थ नदी में ले जाकर डालने या इसमें मिलने से पूर्व वाहित मल का उपचार किया जाता हैकेवल 0.1 प्रतिशत अपद्रव्यों (इम्प्यूरीटीजके कारण ही घरेलू वाहित मल मानव के उपयोग के लायक नहीं रहता है। आप वाहित मल उपचार-संयत्र के बारे में अध्याय 10 में पढ़ चुके हैं। ठोस पदार्थों को निकालना अपेक्षाकृत आसान है लेकिन विलीन लवणजैसे नाइट्राइटफास्फेट और अन्य पोषकों तथा विषैले धातु आयनों और कार्बनिक यौगिक को निकालना कठिन है। घरेलू मल में मुख्य रूप से जैव निम्नीकरणीय कार्बनिक पदार्थ होते हैं जिनका अपघटन (डिकम्पोजिशनआसानी से होता है। हम अभारी हैं जीवाणु (बैक्टीरियाऔर अन्य सूक्ष्म जीवों के जो इन जैव पदार्थों का उपयोग कार्यद्रव (सब्सट्रेटके रूप में भी करके अपनी संख्या में वृद्धि कर सकते हैं और इस प्रकार ये वाहित मल के कुछ अवयवों का उपयोग करते हैं। वाहितमल जल जीव रासायनिक आॅक्सीजन आवश्यकता (बायोकेमिकल आॅक्सीजन डिमांड/बीओडीमाप कर जैव पदार्थ की मात्रा का आकलन किया जा सकता है। क्या आप बता सकते हैं कि यह किस प्रकार किया जाता हैसूक्ष्मजीव से सम्बन्धित अध्याय में आप बीओडीसूक्ष्मजीवों और जैव निम्नीकरणीय पदार्थ के परस्पर सम्बन्ध के बारे में पढ़ चुके हैं।

चित्र 16.3 में कुछ परिवर्तन दर्शाए गए हैं जिन्हें नदी में वाहित मल के विसर्जन के पश्चात देखा जा सकता है। अभिवाही जलाशय में जैव पदार्थों के जैव निम्नीकरण (बायोडिग्रेडेशनसे जुड़े सूक्ष्मजीव आॅक्सीजन की काफी मात्रा का उपभोग करते हैं। इसके स्वरूप वाहितमल विसर्जन स्थल पर भी अनुप्रवाह (डाउनस्ट्रीमजल में घुली आॅक्सीजन की मात्रा में तेजी से गिरावट आती है और इसके कारण मछलियों तथा अन्य जलीय जीवों के मृत्यु दर में वृद्धि हो जाती है।

जलाशयों में काफी मात्रा में पोषकों की उपस्थिति के कारण प्लवकीय (मुक्त-प्लावीशैवाल की अतिशय वृद्धि होती है इसे शैवाल प्रस्फुटन (अल्गल ब्लूमकहा जाता है। इसके कारण जलाशयों का रंग विशेष प्रकार का हो जाता है। शैवाल प्रस्फुटन के कारण जल की गुणवत्ता घट जाती है और मछलियाँ मर जाती हैं। कुछ प्रस्फुटनकारी शैवाल मनुष्य और जानवरों के लिये अतिशय विषैले होते हैं।

आपने नीलाशोण (मोवरंग के सुन्दर फूलों का देखा होगा जो जलाशयों में काफी चित्ताकर्षक आकार के प्लावी पौधें पर होते हैं। ये पौधे अपने सुन्दर फूलों के कारण भारत में उगाए गए थेलेकिन अपनी अतिशय वृद्धि के कारण तबाही मचा रहे हैं। ये पौधे हमारी हटाने की क्षमता से कहीं अधिक तेजी से वृद्धि करहमारे जलमार्गों (वाटर वेको अवरुद्ध कर। ये जल हायसिंथ (आइकोर्निया केसिपीजपादप हैं जो विश्व के सबसे अधिक समस्या उत्पन्न करने वाले जलीय खरपतवार (वीडहैं और जिन्हें बंगाल का आतंक भी कहा जाता है। ये पादप सुपोषी जलाशयों में काफी वृद्धि करते हैं और इसके पारितंत्र गति को असन्तुलित कर देते हैं।

हमारे घरों के साथ-साथ अस्पतालों के वाहित मल में बहुत से अवांछित रोगजनक सूक्ष्मजीव हो सकते हैं और उचित उपचार के बिना इसको जल में विसर्जित करने से कठिन रोगजैसे पेचिश (अतिसार), टाइफाइडपीलिया (जांडिस), हैजा (कोलराआदि हो सकते हैं।

घरेलू वाहित मल की अपेक्षा उद्योगोंजैसे पेट्रोलियमकागज उत्पादनधातु निष्कर्षन (एक्सट्रेक्सनएवं प्रसंस्करण (प्रोसेसिंग), रासायनिक-उत्पादन आदि के अपशिष्ट जल में प्रायः विषैले पदार्थखासकर भारी धातु (ऐसे तत्त्व जिनका घनत्व >5 ग्राम/सेमीजैसे पाराकैडमियमतांबासीसा आदिऔर कई प्रकार के कार्बनिक यौगिक होते हैं।

उद्योगों के अपशिष्ट जल में प्रायः विद्यमान कुछ विषैले पदार्थों में जलीय खाद्य शृंखला जैव आवर्धन (बायोमैग्निफिकेशनकर सकते हैं। जैव आवर्धन का तात्पर्य हैक्रमिक पोषण स्तर (ट्राॅफिक लेबलपर आविषाक्त की सान्द्रता में वृद्धि का होना। इसका कारण है जीव द्वारा संग्रहित आविषालु पदार्थ उपापचयित या उत्सर्जित नहीं हो सकता और इस प्रकार यह अगले उच्चतर पोषण स्तर पर पहुँच जाता है। यह परिघटन पारा एवं डीडीटी के लिये सुविदित है। चित 16.5 में जलीय खाद्य शृंखला में डीडीटी का जैव आवर्धन दर्शाया गया है।

इस प्रकार क्रमिक पोषण स्तरों पर डीडीटी की सान्द्रता बढ़ जाती है। यदि जल में यह सान्द्रता 0.003 पीपीबी से आरम्भ होती है तो अन्त में जैव आवर्धन के द्वारा मत्स्यभक्षी पक्षियों में बढ़कर 25 पीपीएम हो जाती है। पक्षियों में डीडीटी की उच्च सान्द्रता कैल्शियम उपापचय को नुकसान पहुँचाती है जिसके कारण अंड-कवच (एग शेलपतला हो जाता है और यह समय से पहले फट जाता है जिसके कारण पक्षी-समष्टि (बर्ड पोपुलेशनयानी इनकी संख्या में कमी हो जाती है।

सुपोषण (यूट्राफिकेशनझील का प्राकृतिक काल-प्रभावन (एजिंगदर्शाता है यानी झील अधिक उम्र की हो जाती है। यह इसके जल की जैव समृद्धि के कारण होता है। तरुण (कम उम्र कीझील का जल शीतल और स्वच्छ होता है। समय के साथ-साथइसमें सरिता के जल के साथ पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन और फाॅस्फोरस आते रहते हैं जिसके कारण जलीय जीवों में वृद्धि होती रहती है। जैसे-जैसे झील की उर्वरता बढ़ती है वैसे-वैसे पादप और प्राणि जीवन प्राणि बढ़ने लगते हैं और कार्बनिक अवशेष झील के तल में बैठने लगते हैं। सैकड़ों वर्षों में इसमें जैसे-जैसे साद (सिल्टऔर जैव मलबे (आर्गेनिक मलबाका ढेर लगता जाता है वैसे-वैसे झील उथली और गर्म होती जाती हैझील के ठंडे पर्यावरण वाले जीव के स्थान पर उष्णजल जीव रहने लगते हैं। कच्छ पाद उथली जगह पर जड़ जमा लेते हैं और झील की मूल द्रोणी (बेसिनको भरने लगते हैं उथले झील में अब कच्छ पादप उग आते हैं और मूल झील बेसिन उनसे भर जाता है। कालान्तर में झील काफी संख्या में प्लावी पादपों (दलदल/बाॅगसे भर जाता है और अन्त में यह भूमि परिवर्तित हो जाता है। जलवायुझील का साइज और अन्य कारकों के अनुसार झील का यह प्राकृतिक काल-प्रभावन हजाारों वर्षों में होता है। फिर भी मनुष्य के क्रिया कलापजैसे उद्योगों और घरों के बहिःस्राव (एफ्लुएंटकाल-प्रभावन प्रक्रम में मूलतः तेजी ला सकते हैं। इस प्रक्रिया को संवर्ध (कल्चरलया त्वरित सुपोषण (एक्सिलरेटेड यूट्राॅफिकेशनकहा जाता है। गत शताब्दी में पृथ्वी के कई भागों के झील का वाहित मल और कृषि तथा औद्योगिक अपशिष्ट के कारण तीव्र सुपोषण हुआ है। इसके मुख्य सन्दूषक नाइट्रेट और फाॅस्फोरस हैं जो पौधों के लिये पोषक का कार्य करते हैं। इनके कारण शैवाल की वृद्धि अति उद्दीपित होती है जिसकी वजह से अरमणीक मलफेन (स्कमबनते तथा अरुचिकर गंध निकलती हैं। ऐसा होने से जल में विलीन आॅक्सीजन जो अन्य जल-जीवों के लिये अनिवार्य (वाइटलहैसमाप्त हो जाती है। साथ ही झील में बहकर आने वाले अन्य प्रदूषक सम्पूर्ण मत्स्य समष्टि को विषाक्त कर सकता है। जिनके अपघटन के अवशेष से जल में विलीन आॅक्सीजन की मात्रा और कम हो जाती है। इस प्रकार वास्तव में घुट कर मर सकती है।

विद्युत उत्पादी यूनिट यानी तापीय विद्युत संयंत्रों से बाहर निकलने वाले तप्त (तापीयअपशिष्ट जल दूसरे महत्त्वपूर्ण श्रेणी के प्रदूषक हैं। तापीय अपशिष्ट जल में उच्च तापमान के प्रति संवेदनशील जीव जीवित नहीं रह पाते या इसमें उनकी संख्या कम हो जाती है लेकिन अत्यन्त शीत-क्षेत्रों में इसमें पौधों तथा मछलियों की वृद्धि अधिक होती है।

एकीकृत अपशिष्ट जल उपचारः केस अध्ययन


वाहित मल सहित अपशिष्ट जल का उपचार एकीकृत ढंग से कृत्रिम और प्राकृतिक दोनों प्रक्रमों को मिला-जुलाकर किया जा सकता है। इस प्रक्रम का प्रयास कैलीफोर्निया के उत्तरी तट पर स्थित अर्काटा शहर में किया गया। हमबोल्ट स्टेट यूनीवर्सिटी के जीव वैज्ञानिकों के सहयोग से शहर के लोगों ने प्राकृतिक तंत्र के अन्तर्गत एकीकृत जल उपचार प्रक्रम तैयार किया गया। जलोपचार का कार्य दो चरणों में किया जाता है (परम्परागत अवसादनजिसमें निस्यन्दन और क्लोरीन द्वारा उपचार किया जाता है। इस चरण के बाद भी खतरनाक प्रदूषक जैसे भारी धातुकाफी मात्र में घुले रूप में रह जाते हैं। इसे दूर करने के लिये एक नवीन प्रक्रिया अपनाई गई और (जीव वैज्ञानिकों ने लगभग 60 हेक्टेयर कच्छ भूमि में आपस में जुड़े हुए छह कच्छों (मार्शेसकी एक शृंखला विकसित की। इस क्षेत्र में उचित पादपशैवालकवक और जीवाणु छिड़के गए जो प्रदूषकों को निष्प्रभावीअवशोषित और स्वांगीकृत (एसिमिलेटकरते हैं। इसलिये कच्छों से होकर गुजरने वाला जल प्राकृतिक रूप से शुद्ध हो जाता है।

कच्छ एक अभयारण्य की तरह कार्य करता है यहाँ उच्च स्तरीय जैव विविधताऔर मछलियाँजानवर और पक्षी वास करते हैं। इस आश्चर्यजनक परियोजना की देखभाल तथा सुरक्षा नागरिकों के एक समूहफ्रेंड्स ऑफ आर्कटा मार्श (एफओएएमद्वारा की जाती है।

अब तक हमारी यह धारणा रही है कि अपशिष्ट को दूर करने के लिये जल यानी वाहित मल के निर्माण की जरूरत होती है। लेकिन मानव अपशिष्टउत्सर्ग (एक्सक्रीटायानी मल-मूत्र के निपटान के लिये यदि जल जरूरी  हो तो क्या होगाक्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि यदि टॉयलेट को फ्लश  करना पड़े तो जल की कितनी बचत होगीवास्तव में यह एक वास्तविकता है।

मानव उत्सर्ग (मलमूत्रके हैण्डलिंग (निपटानके लिये पारिस्थितिक स्वच्छता एक निर्वहनीय तंत्र है जिसमें शुष्क टॉयलेट कम्पोस्टिंग का प्रयोग किया जाता है। मानव अपशिष्ट निपटान के लिये यह व्यावहारिकस्वास्थ्यकर और कम लागत का तरीका है। यहाँ ध्यान देने योग्य मुख्य बात यह है कि कम्पोस्ट की इस विधि से मानव मलमूत्र (उत्सर्गका पुनश्चक्रण कर एक संसाधन (प्राकृतिक उर्वरकके रूप में परिवर्तित किया जा सकता है। इससे रासायनिक खाद की आवश्यकता कम हो जाती है। केरल के कई भागों और श्रीलंका में ‘इकोसैन’ शौचालयों (टॉयलेटका प्रयोग किया जा रहा है।

ठोस अपशिष्ट

ठोस अपशिष्ट में वे सभी चीजें सम्मिलित हैं जो कूड़ा-कचरा में फेंक दी जाती हैं। नगरपालिका के ठोस-अपशिष्ट में घरोंकार्यालयोंभण्डारोंविद्यालयों आदि से रद्दी में फेंकी गई सभी चीजें आती हैं जो नगरपालिका द्वारा इकट्ठा की जाती हैं और उनका निपटान किया जाता है। नगरपालिका के ठोस अपशिष्ट में आमतौर पर कागजखाद्य अपशिष्टकाँचधातुरबड़चमड़ावस्त्र आदि होते हैं। इनको जलाने से अपशिष्ट के आयतन में कमी  जाती है। लेकिन यह सामान्यतः पूरी तरह जलता नहीं है और खुले में इसे फेंकने से यह चूहों और मक्खियों के लिये प्रजनन स्थल का कार्य करता है। सेनिटरी लैंडफिल्स खुले स्थान में जलाकर ढेर लगाने के बदले अपनाया गया था। सेनिटरी लैंडफिल में अपशिष्ट को संहनन (कॉम्पैक्शनके बाद गड्ढा या खाई में डाला जाता है और प्रतिदिन धूल-मिट्टी (डर्टसे ढँक दिया जाता है। यदि आप किसी शहर या नगर में रहते हैं तो क्या आपको मालूम है कि सबसे नजदीकी लैंडफिल स्थल कहाँ हैवास्तव में लैंडफिल्स भी कोई अच्छा हल नहीं है क्योंकि खासकर महानगरों में कचरा (गार्बेजइतना अधिक होने लगा है कि ये स्थल भी भर जाते हैं। इन लैंडफिल्स से रासायनों के भी रिसाव का खतरा है जिससे कि भौम जल संसाधन प्रदूषित हो जाते हैं।इन सबका एक मात्र हल है कि पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति हम सभी को अधिक संवेदनशील होना चाहिए। हमारे द्वारा उत्पन्न अपशिष्ट को तीन श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है (जैव निम्नीकरण योग्य (बायोडिग्रेडेबल) (पुनश्चक्रण योग्य और (जैव निम्नीकरण अयोग्य। यह महत्त्वपूर्ण है कि उत्पन्न सभी कचरे की छँटाई की जाये। जिस कचरे का प्रयोग या पुनश्चक्रण किया जा सकता है उसे अलग किया जाये। कचराबीन या गुदड़िया (रैग पिकरपुनश्चक्रण किये जाने वाले पदार्थों को अलग कर एक बड़ा काम करता है। जैव निम्नीकरणीय पदार्थों को जमीन में गहरे गड्ढे में रखा जा सकता है और प्राकृतिक रूप में अपघटन के लिये छोड़ दिया जाता है। इसके पश्चात केवल अजैव निम्नीकरणीय निपटान के लिये बच जाता है। हमारा मुख्य लक्ष्य होना चाहिए कि कचरा कम उत्पन्न हो लेकिन इसके स्थान पर हम लोग अजैवनिम्नीकरणीय उत्पादों का प्रयोग अधिक करते जा रहे हैं। किसी अच्छी गुणवत्ता की खाद्य सामग्री का तैयार (Ready-made) पैकेटजैसे बिस्कुट का पैकेट उठाकर उसकी पैकिंग को देखें और क्या आप पैकिंग के कई रक्षात्मक तहों को देखते हैंउनमें से एक तह प्लास्टिक की होती है। हम अपनी दैनिक प्रयोग में आने वाली चीजोंजैसे दूध और जल को भी पॉलीबैग में पैक करने लगे हैं। शहरों में फल और सब्जियाँ भी सुन्दर पॉलीस्टेरीन और प्लास्टिक पैक में कर दी जा सकती हैं। हमें इनकी काफी कीमत चुकानी पड़ती है और हम करते क्या हैंपर्यावरण को काफी प्रदूषित करने में योगदान दे रहे हैं। पूरे देश में राज्य सरकारें प्रयास कर रही हैं कि प्लास्टिक का प्रयोग कम हो और इनके बदले पारि-हितैषी या मैत्री पैकिंग का प्रयोग हो। हम जब सामान खरीदने जाएँ तो कपड़े का थैला या अन्य प्राकृतिक रेशे के बने कैरी-बैग लेकर जाएँ और पॉलिथीन के बने थैले को लेने से मना करें।

 

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