ग्रीनहाउस प्रभाव और विश्वव्यापी उष्णता
‘ग्रीनहाउस प्रभाव’ शब्द की उत्पत्ति एक ऐसी परिघटना से हुई है जो पौधघर (ग्रीन हाउस) में होती है। क्या आपने कभी पौधघर देखा है? यह एक छोटा ग्लास का घर जैसा होता है जिसका उपयोग खासकर शीत ऋतु में पौधों को उगाने के लिये किया जाता है। ग्लास पैनल प्रकाश को अन्दर तो आने देता है लेकिन ताप को बाहर नहीं निकलने देता। इसलिये पौधघर ठीक उसी तरह गर्म हो जाता है जैसा कि कुछ घंटों के लिये धूप में पार्क कर दी गई कार का भीतरी भाग गर्म हो जाता है।
ग्रीनहाउस प्रभाव प्राकृतिक रूप से होने वाली परिघटना है जिसके कारण पृथ्वी की सतह और वायुमण्डल गर्म हो जाता है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि यदि ग्रीनहाउस प्रभाव नहीं होता तो आज पृथ्वी की सतह का औसत तापमान 15 डिग्री सेंटीग्रेड रहने के बजाय ठंडा होकर -18 (शून्य से नीचे) डिग्री सेंटीग्रेड रहता। ग्रीनहाउस प्रभाव को समझने के लिये यह जानना जरूरी है कि सबसे बाहरी वायुमंडल में पहुँचने वाली सूर्य की ऊर्जा का क्या होता है। पृथ्वी की ओर आने वाले सौर विकिरण का लगभग एक चौथाई भाग बादलों और गैसों से परावर्तित (रिफ्लेक्ट) हो जाता है और दूसरा चौथाई भाग वायुमंडलीय गैसों द्वारा अवशोषित हो जाता है। लगभग आधा आगत (इनकमिंग) सौर विकिरण पृथ्वी की सतह पर पड़ता है और उसे गर्म करता है इसका (इंफ्रारेड रेडिएशन) कुछ भाग परावर्तित होकर लौट जाता है। पृथ्वी की सतह अन्तरिक्ष में अवरक्त विकिरण के रूप में ऊष्मा (हीट) उत्सर्जित करती है। लेकिन इसका केवल बहुत छोटा भाग (टाइनी फ्रैक्शन) ही अन्तरिक्ष में जाता है क्योंकि इसका अधिकांश भाग वायुमंडलीय गैसों (यानी कार्बन डाइऑक्साइड, मेथेन, जलवाष्प, नाइट्रस ऑक्साइड और क्लोरो फ्लोरो कार्बनों) के द्वारा अवशोषित हो जाता है। इन गैसों के अणु (मॉलिक्यूल्स) ऊष्मा ऊर्जा (हीट एनर्जी) विकिरित करते हैं और इसका अधिकतर भाग पृथ्वी की सतह पर पुनः आ जाता है और इसे फिर से गर्म करता है। यह चक्र अनेकों बार होता रहता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह और निम्नतर वायुमंडल गर्म होता रहता है। ऊपर वर्णित गैसों को आमतौर पर ग्रीनहाउस गैस कहा जाता है क्योंकि इनके कारण ही ग्रीनहाउस प्रभाव पड़ते हैं।
ग्रीनहाउस गैसों के स्तर में वृद्धि के कारण पृथ्वी की सतह का ताप काफी बढ़ जाता है जिसके कारण विश्वव्यापी उष्णता होती है। गत शताब्दी में पृथ्वी के तापमान में 0-6 डिग्री सेंटीग्रेड वृद्धि हुई है। इसमें से अधिकतर वृद्धि पिछले तीन दशकों में ही हुई है। एक सुझाव के अनुसार सन 2100 तक विश्व का तापमान 1.4-5.8 डिग्री सेंटीग्रेड बढ़ सकता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि तापमान में इस वृद्धि से पर्यावरण में हानिकारक परिवर्तन होते हैं जिसके परिणामस्वरूप विचित्र जलवायु-परिवर्तन (जैसे कि E1 तीनों प्रभाव) होते हैं। इसके फलस्वरूप ध्रुवीय टिम टोपियों और अन्य जगहों, जैसे हिमालय की हिम चोटियों का पिघलना बढ़ जाता है। कई वर्षों बाद इससे समुद्र-तल का स्तर बढ़ेगा जो कई समुद्रतटीय क्षेत्रों को जलमग्न कर देगा। वैश्विक उष्णता से होने वाले परिवर्तनों का कुल परिदृश्य अभी भी सक्रिय अनुसन्धान का विषय है।
हम लोग विश्वव्यापी उष्णता को किस प्रकार नियंत्रित कर सकते हैं? इसका उपाय है जीवाश्म ईंधन के प्रयोग को कम करना, ऊर्जा दक्षता में सुधार करना, वनोन्मूलन को कम करना तथा वृक्षारोपण और मनुष्य की बढ़ती हुई जनसंख्या को कम करना। वायुमंडल में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिये अन्तरराष्ट्रीय प्रयास भी किये जा रहे हैं।
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