पर्यावरण के मुद्दे-गत सौ वर्ष में मनुष्य की जनसंख्या में भारी बढ़ोत्तरी हुई है। इसके कारण अन्न, जल, घर, बिजली, सड़क, वाहन और अन्य वस्तुओं की माँग में भी वृद्धि हुई है परिणामस्वरूप हमारे प्राकृतिक संसाधनों पर काफी दबाव पड़ रहा है और वायु, जल तथा भूमि प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। हमारी आज भी आवश्यकता है कि विकास की प्रक्रिया को बिना रोके अपने महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों को खराब होने और इनको अवक्षय को रोकें और इसे प्रदूषित होने से बचाएँ। By: ECHO Foundation
बावड़ी, जिसे अंग्रेजी में 'stepwell' कहा जाता है, एक प्रकार का परंपरागत जल संरक्षण संरचना है जो मुख्य रूप से भारत में पाई जाती है। बावड़ियाँ प्राचीन काल से ही जल संरक्षण और जल प्रबंधन के महत्वपूर्ण साधन रही हैं। इनका निर्माण मुख्यतः सूखे और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में किया गया था जहाँ जल की कमी अधिक होती थी। बावड़ियों का निर्माण विभिन्न साम्राज्यों और राजवंशों द्वारा किया गया था, जिनमें विशेष रूप से गुजरात, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश प्रमुख हैं।
बावड़ी का निर्माण और संरचना
बावड़ी की संरचना बहुत ही जटिल और वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण होती है। इसका निर्माण जमीन के नीचे किया जाता है, जिसमें एक सीढ़ीदार मार्ग होता है जो पानी तक पहुँचने में मदद करता है। सीढ़ियों के किनारे दीवारों में पत्थर की सुंदर नक़्क़ाशी और मूर्तियाँ होती हैं। बावड़ी में निम्नलिखित प्रमुख हिस्से होते हैं:
सीढ़ियाँ (Steps): सीढ़ियों के माध्यम से लोग जल तक पहुँचते थे। ये सीढ़ियाँ विभिन्न स्तरों पर होती हैं, जिससे जल का स्तर कम होने पर भी पानी तक पहुँच संभव होती है।
कुओं (Wells): बावड़ी के निचले हिस्से में कुएं होते हैं जहाँ पानी संचित होता है।
जलाशय (Reservoirs): बावड़ी के भीतर बड़े जलाशय होते हैं जो वर्षा के पानी को संचित करने में मदद करते हैं।
मंडप (Pavilions): कई बावड़ियों में मंडप या छतरियाँ होती हैं जो आराम करने या पूजा के स्थान के रूप में कार्य करती हैं।
दीवारें और स्तंभ (Walls and Pillars): इन पर उत्कृष्ट नक्काशी और मूर्तिकला होती है जो तत्कालीन कला और संस्कृति का प्रतीक होती हैं।
बावड़ियों का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
बावड़ियों का न केवल जल संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान था, बल्कि ये सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन का भी केंद्र थीं। महिलाएं यहाँ पानी भरने आती थीं और इसके साथ ही सामाजिक बातचीत का भी केंद्र बनती थीं। कई बावड़ियों में धार्मिक महत्व भी होता था और वे धार्मिक स्थलों के निकट बनाई जाती थीं। कुछ प्रसिद्ध बावड़ियों में निम्नलिखित शामिल हैं:
रानी की वाव (गुजरात): यह पाटन, गुजरात में स्थित है और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसे सोलंकी वंश की रानी उदयामति ने 11वीं सदी में बनवाया था।
चाँद बावड़ी (राजस्थान): यह आभानेरी गांव, राजस्थान में स्थित है और भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है।
अग्रसेन की बावड़ी (दिल्ली): यह दिल्ली में स्थित है और मध्यकालीन भारत की एक महत्वपूर्ण बावड़ी है।
बावड़ियों का संरक्षण
आज के समय में कई बावड़ियाँ उपेक्षा और जल स्तर में गिरावट के कारण क्षतिग्रस्त हो रही हैं। लेकिन कुछ गैर-सरकारी संगठन और सरकारी प्रयास इन्हें पुनर्स्थापित करने और उनके महत्व को बनाए रखने का काम कर रहे हैं। बावड़ियों का संरक्षण न केवल हमारे सांस्कृतिक धरोहर को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह जल संरक्षण के पारंपरिक और प्रभावी तरीकों का पुनर्जीवन भी है।
निष्कर्ष
बावड़ी न केवल जल संरक्षण की एक अद्वितीय प्रणाली है, बल्कि यह भारतीय इतिहास, संस्कृति और वास्तुकला का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। आधुनिक समय में बावड़ियों के संरक्षण और पुनरुद्धार के प्रयासों से हमें जल संकट से निपटने में भी मदद मिल सकती है।